Question -1 रोना क्या है? क्या रोना हमे कमजोर सिद्ध करता है …
रोने का अर्थ है कि इनसान के अन्दर कोई भाव इतना प्रबल हो गया है कि अब आंसुओं के अतिरिक्त उसे प्रकट करने का कोई और उपाय है नहीं है। फिर वह भाव चाहे दुख का हो, चाहे आनंद का हो।
आंसू अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। गहन भावनाओं को,जो हृदय के गहरे से उठती हैं, वे आंसुओं में ही प्रकट हो सकती हैं। शब्द छोटे पड़ते हैं।
गीत छोटे पड़ते हैं। जहां गीत चूक जाते हैं, वहां आंसू शुरू होते हैं। जो किसी और तरह से प्रकट नहीं होता वह आंसुओं से प्रकट होता है।
आंसू तुम्हारे भीतर कोई ऐसी भाव-दशा से उठते हैं जिसे सम्हालना और संभव नहीं है, वो भाव का आवेग इतना प्रबल है कि तुम उसे सम्हाल ना सकोगे, जिसकी बाढ़ तुम्हें बहा ले जाती है।
फिर, ये आंसू चूंकि आनंद के हैं, इनमें मुस्कुराहट भी मिली होगी, इनमें हंसी का स्वर भी होगा। और चूंकि ये आंसू अहोभाव के हैं, इनमें गीत की ध्वनि भी होगी। तो गाओ भी,रोओ भी, हंसो भी–तीनों साथ चलने दो। कंजूसी क्या? एक क्यों? तीनों क्यों नहीं?
लेकिन, मन हिसाबी-किताबी है। वह सोचता है: एक करना ठीक मालूम पड़ता है–या तो गा लो या रो लो। मैं तुमसे कहता हूं कि इस हिसाब को तोड़ने की ही तो सारी चेष्टा चल रही है। यही तो दीवाने होने का अर्थ है।
तुमने अगर कभी किसी को रोते, हंसते, गाते एक साथ देखा हो, तो सोचा होगा पागल है। पागल ही कर सकता है इतनी हिम्मत।
होशियार तो कमजोर होता है, होशियारी के कारण कमजोर होता है। होशियार तो सोच-सोच कर कदम रखता है, सम्हाल-सम्हाल कर कदम रखता है। उसी सम्हालने में तो चूकता चला जाता है।
होशियारों को कब परमात्मा मिला! होशियार चाहे संसार में साम्राज्य को स्थापित कर लें, परमात्मा के जगत में बिलकुल ही वंचित रह जाते हैं।वह राज्य उनका नहीं है। वह राज्य तो दीवानों का है। वह राज्य तो उनका है जिन्होंने तर्क-जाल तोड़ा, जो भावनाओं के रहस्यपूर्ण लोक में प्रविष्ट हुए।
इन तीनों द्वारों को एक साथ ही खुलने दो। परमात्मा ने हृदय पर दस्तक दी, तब ऐसा होता है। इसे सौभाग्य समझो।
Question -2 सब से बड़ा पुण्य क्या है? question and answer
खुश रहने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है
आदमी एक-दूसरे को दुख दे रहा है, क्योंकि हर आदमी दुखी है। एक दुखी आदमी केवल दुख दे सकता है, एक दुखी आदमी को समझाना व्यर्थ है कि आप दुख नहीं देते। वह चोट करेगा! उसे केवल दुःख है।
आपका क्या करते हैं? जब भी वह बांटेगा तब वह दुख साझा करेगा। शायद वह यह भी सोचता है कि मैं खुशी साझा कर रहा हूं, शायद वह भी मानता है कि मैं खुशी दे रहा हूं। शायद बेटा सोचता है, मैं अपनी मां को खुशी दे रहा हूं। लेकिन मां दुखी हो रही है। हो सकता है
पति सोचता है, मैं अपनी पत्नी को खुशी दे रहा हूं। लेकिन पत्नी आहत हो रही है। पत्नी सोचती है, मैं अपने पति की कितनी सेवा कर रही हूं, कितना सुख दे रही हूं। और पति का जीवन संकट में है।हम सुख देते प्रतीत होते हैं, लेकिन यह दुःख तक पहुँचता है, क्योंकि हमारे पास दुःख के अलावा कुछ भी नहीं है। दुखी होने के अलावा और कोई पाप नहीं है।
ओशो ♣ ♣
Question -3 osho क्या ये दुख रोके नहीं जा सकते ? मै दुनिया के लोगों को दुखी हो जाता हूँ कृपया कुछ समाधान बताऐ मै दुनिया के दुख देख कर रोता हूँ
प्रश्न से तुम्हारे ऐसा लगता है कि कम से कम तु म दुखी नहीं हो। दुनिया के दुख देखकर रोने का हक उसको है जो दुखी न हो। नहीं तो तुम्हारे रोने से और दुख बढ़ेगा, घटेगा थोड़े ही और तुम्हारे रोने से किसी का दुख कटनेवाला है? दुनिया सदा से दुखी है। इस सत्य को, चाहे यह सत्य कितना ही कडुवा क्यों न हो, स्वीकार करना दया होगा।
दुनिया सदा दुखी रही है। दुनिया के दुख कभी समाप्त नहीं होंगे। व्यक्तियों के दुखसमाप्त हुए हैं। व्यक्तियों के ही दुख समाप्त हो सकते हैं। हां, तुम चाहो तो तुम्हारा दुख समाप्त हो सकता है। तुम दूसरे का दुख कैसे समाप्त करोगे?
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि लोगों को रोटी नहीं दी जा सकती, मकान नहीं दिये जा सकते। दिये जा सकते हैं, दिये जा रहे हैं दिये गये हैं। लेकिन दुख फिर भी मिटते नहीं। सच तो यह है, दुख और बढ़ गये हैं। जहां लोगों को मकान मिल गये हैं रोटी—रोजी मिल गई है, काम मिल गया है, धन मिल गया है वहां दुख और बढ़ गये हैं, घटे नहीं है। आज अमरीका जितना दुखी है उतना इस पृथ्वी पर कोई देश दुखी नहीं है। हां, दुखी ने नया रूप ले लिया। शरीर के दुख नहीं रहे, अब मन के दुख हैं। और मन के दुख निश्चित ही शरीर के दुख से ज्यादा गहरे होते हैं।
शरीर को गहराई ही क्या! गहराई तो मन की होती है। अमरीका में जितने लोग पागल होते हैं उतने दुनिया के किसी देश में नहीं होते। और अमरीका में जितने लोग आत्महत्या करते हैं उतनी आत्महत्या दुनिया में कहीं नहीं की जाती। अमरीका में जितने विवाह टूटते हैं उतने विवाह कहीं नहीं टूटते। अमरीका के मन पर जितना बोझ और चिंता है उतनी किसी के मन पर नहीं है। और अमरीका भौतिक अर्थों में सबसे ज्यादा सुखी है।
पृथ्वी पर पहली बार पूरे अब तक के इतिहास में एक देश समृद्ध हुआ है। मगर समृद्धि के साथ—साथ दुख की भी बाढ़ आ गई। मेरे लेखे जब तक आदमी जागृत न हो तब तक वह क़ुछ भी करे, दुखी रहेगा। भूखा हो तो भूख से दुखी रहेगा और भरा पेट हो तो भरे पेट के कारण दुखी रहेगा ।
Osho || ओशो
Qustion-4 -osho Dukh से मुक्ति कैसे मिले?
गरीब की आकांक्षाएं भी गरीब होती हैं खयाल रखना। अब गरीब आदमी ऐसा झाड़ के नीचे बैठा हुआ सपने नहीं देखता कि मैं सम्राट हो जाऊं यह बात जरा इतनी फिजूल लगती है इतनी मूढ़तापूर्ण लगती है कि यह होने वाली नहीं है। ठीकरा पास नहीं है सम्राट होने की बात से क्या मतलब है कुछ हल नहीं होता।
गांव का भिखारी यही सोचता है कि इस गांव में मैं सबसे धनी भिखारी कैसे हो जाऊं ज्यादा से ज्यादा सौ-पचास भिखारी गांव में हैं इन सबका मुखिया कैसे हो जाऊं? बस इससे ज्यादा उसकी आकांक्षा नहीं होती। सबसे बड़ा भिखारी कैसे हो जाऊं?
गरीब की आकांक्षा भी गरीब होती है। अमीर की आकांक्षा भी अमीर होती है। और यह बड़ा मजा है। तो गरीब के पास अगर हजार रुपये थे दस हजार की सोचता था। जब वे दस हजार उसके पास हो गए तो अब वह अमीर हो गया। अब वह लाख की सोचता है और नब्बे हजार का दुख पैदा कर लेता है। इसलिए अमीर आदमी ज्यादा दुख में पड़ता चला जाता है।
क्योंकि जैसे-जैसे उसकी संपदा बढ़ती है वैसे-वैसे वासना की हिम्मत बढ़ती है। वह सोचता है कि जब दस हजार कमा लिए तो लाख क्यों नहीं कमा सकता बल आ गया। वह कहता है कुछ करके दिखा देंगे। ऐसे ही नहीं चले जाएंगे।
अब देखो हजार थे दस हजार कर लिए। दस गुने कर लिए तो दस गुना करने की मेरी हिम्मत है। अब दस हजार हैं तो लाख हो सकते हैं क्योंकि दस गुना मैं कर सकता हूं। मगर यह कहां रुकेगा? जब लाख हो जाएंगे तो यह दस लाख की सोचने लगेगा ऐसे तुम रोज ही दुख बनाते जाओगे और रोज दुख बड़ा होता जाएगा रोज दुख फैलता चला जाएगा।
एक दिन तुम अगर पाते हो कि तुम दुख में घिरे खड़े हो सब तरफ दुख से भरे पड़े हो दुख के सागर में डूबे हो तो किसी और की जिम्मेवारी नहीं है। तुमने अपनी ही वासनाओं की छाया की तरह दुख पैदा कर लिया है दुख से मुक्त होना है तो सीधे दुख से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं है। वासना को समझो। और अब वासनाएं मत फैलाओ।
सुख का उपाय है जो है उसका आनंद लो जो नहीं है उसकी चिंता न करो। दुख का उपाय है जो है उसकी तो फिकर ही मत लो जो नहीं है उसकी चिंता करो। दुख का अर्थ है अभाव पर ध्यान रखो भाव को भूलो। जो पत्नी तुम्हारे घर में है उसकी फिकर न करो।
उसमें क्या रखा है? तुम्हारी पत्नी जो पड़ोसी की पत्नी है वह सुंदर है।
अंग्रेजी में कहावत है दूसरे के बगीचे की घास सदा ज्यादा हरी मालूम होती है। होती भी है मालूम। जब तुम देखते हो दूर से दूसरे का लॉन खूब हरा लगता है तुम्हारा अपना लॉन इतना हरा नहीं मालूम पड़ता। दूसरे का मकान सुंदर मालूम होता है। दूसरे की कार सुंदर मालूम होती है। दूसरे की पत्नी सुंदर मालूम होती है। दौड़ चलती चली जाती है।
सुख का सूत्र है जो तुम्हारे पास है उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दो। जो है वह पर्याप्त है।
ओशो
कहै कबीर मैं पूरा पाया♣️
Question-5 मैं विवाहित व्यक्ति हूं। मैं तो वैवाहिक जीवन में कोई दुख नहीं देखता हूं, फिर आप क्यों वैवाहिक जीवन का मजाक उड़ाते हैं?
तिवारी! भैया , ऐसा मालूम पड़ता है, पत्नी भी तुम्हारे साथ यहां आई हुई है। सच कहना, ईमान से कहना।
अदालत में सरकारी वकील ने मुल्ला नसरुद्दीन पर आरोप लगाते हुए कहा कि माई लार्ड, यही वह आदमी है जिसने अपनी पत्नी को चिड़ियाघर के गहरे तालाब में ढकेला था और जिसे मगरमच्छ खा गए थे।
जज के हृदय में तो आनंद की एक लहर उठी। मगर दुर्भाग्य की बात, उस दिन उसकी पत्नी भी अदालत में मौजूद थी, अदालत देखने आई थी। सो जज ने कहाः लेकिन क्या यह बदमाश यह नहीं जानता था कि चिड़ियाघर के जानवरों को कुछ भी खिलाने की मनाही है? चंदूलाल एक दिन अपने मित्र नसरुद्दीन से कह रहे थे कि जैसी आज्ञाकारी हमारी पत्नी है, शायद ही किसी की हो। पत्नी भी मौजूद थी, स्वेटर भी बुनती जाती थी और सुनती भी जाती थी कि क्या बात चल रही है। पत्नियां चार-चार पांच-पांच काम इकट्ठे कर लेती हैं। जैसे स्वेटर बुन लें, पैर से लड़के का झूला भी झुलाती रहें, कान से–पति क्या चर्चा कर रहा है…और जितनी धीमी खुसर-पुसर चर्चा हो रही हो, उतनी साफ उनको सुनाई पड़ती है। जोर से बोलो तो वह सुनने की जरूरत नहीं।
चंदूलाल की यह बात सुन कर नसरुद्दीन चैंका। उसने कहा कि तुम्हारा मतलब? चंदूलाल ने कहाः अरे जब भी कहता हूं कि मुझे गर्म पानी चाहिए, फौरन करके देती है। रोज कहूं तो रोज करके देती है। नसरुद्दीन बोलाः लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर तुम रोज गर्म पानी का करते क्या हो? तुम्हें देख कर तो ऐसा लगता नहीं कि नहाना-धोना भी तुम्हें आता हो!
चंदूलाल बोलेः अरे यार, तुमने भी मूर्खता की हद कर दी! अरे क्या इतनी ठंड में कोई ठंडे पानी से बर्तन साफ कर सकता है? बर्तनों को धोने के लिए आखिर गर्म पानी ही चाहिए न!
भैया नारायणदत्त तिवारी, अकेले आओ कभी। तब बात बनेगी विवाहित जीवन का मजाक नही बल्कि जो मैं कहता हूं, जंचेगा। अभी पत्नी बिलकुल बगल में ही बैठी होगी और तुम्हारे चेहरे की तरफ देख रही होग
मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी बीबी सैर करने को निकले थे। बातचीत चल रही थी कि अचानक बीबी ने किसी बात पर गर्म होकर नसरुद्दीन को जोर से एक चपत रसीद कर दी। नसरुद्दीन तो क्रोध से भनभना गया। बोला कि तूने यह चपत सच में मारी या मजाक में मारी? गुलजान भी क्रोध में आकर बोलीः सच में मारी है, बोल क्या करना है?
नसरुद्दीन नर्म होकर बोलाः कुछ नहीं, यही कि मुझे मजाक इस तरह के बिलकुल पसंद नहीं। यदि सच में मारी है तो कोई बात नहीं।
तुम कह रहे होः मैं विवाहित व्यक्ति हूं। जरूर होओगे! तुम कह रहे होः मैं तो वैवाहिक जीवन में कोई दुख नहीं देखता हूं। फिर आप क्यों वैवाहिक जीवन का मजाक उड़ाते हैं?
सौभाग्यशाली हो। अगर वैवाहिक जीवन में तुम्हें कोई दुख नहीं दिखाई पड़ता तो तुम यहां आए किसलिए हो? क्यों यहां समय खराब कर रहे हो? वैवाहिक जीवन का सुख लो। मगर खाने के दांत और, दिखाने के दांत और। कहते लोग कुछ और, असलियत कुछ और। कहता कोई भी नहीं। कहे कैसे? जबानें बंद हैं। और फिर फजीहत करवाने से सार क्या?
सभी कहानियां, पुरानी कि नई, विवाह पर खत्म हो जाती हैं। फिल्में भी विवाह पर खत्म हो जाती हैं। शहनाई बजती है, माला डाली जा रही, फेरे लगाए जा रहे, और कहानी खत्म! क्योंकि फिर इसके बाद जो होता है, वह न दिखाने योग्य है, न बताने योग्य है, न किसी से कहने योग्य है।
कहानियों में कहा जाता है कि दोनों का विवाह हो गया, फिर दोनों सुख से रहने लगे। तुमने एकाध भी ऐसी कहानी देखी, जिसमें यह आया हो कि विवाह हो गया और फिर दोनों दुख से रहने लगे? ऐसी कहानी ही नहीं लिखी गई आज तक। अगर यह बात सच है कि विवाह हो जाने के बाद दोनों सुख से रहने लगते हैं, तो यह जीवन, यह जगत अपूर्व आनंद से भरा हुआ होना चाहिए। मगर ऐसा कहीं दिखाई पड़ता नहीं। और इस समाज, इस व्यवस्था, इस जीवन की आधारशिला विवाह है। मगर हम छिपाते हैं, हम मुखौटे लगाए रहते हैं।
मै जो मजाक उड़ाता हूं वह सिर्फ तुम्हारे मुखौटों की उड़ा रहा हूं। अब यह भी हो सकता है संयोगवशात तुम अपवाद होओ। मिल गई हो कोई अप्सरा तुम्हें या तुम स्वयं कोई देवता होओ। और दोनों का जीवन सच में ही सुख से बीत रहा हो। मैं यह भी नहीं कहता, क्योंकि मैं कौन हूं संदेह करूं तुम पर? श्रद्धा रखता हूं! तुम्हारी तुम जानो! मगर इतना ही निवेदन है कि अगली बार अकेले आना। और फिर बातें तुम्हें ज्यादा और ढंग से दिखाई पड़ेंगी।
”ओशो🌹🙏🌹
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Question-6 कलाकार आत्महत्या क्यों करते है ?
कहा जाता है कि अभिनेता-निर्देशक गुरुदत ने आत्महत्या की थी, और इस बात को मानने वाले इस बात को स्वीकार नहीं करते कि शराब और नींद की गोलियों के मिश्रण से यह एक दुर्घटना मात्र भी हो सकती थी |
पर तब भी यह प्रश्न उठना तो वाजिब है ही कि वे शराब और नींद की गोलियों के नशे के आदि क्यों बने?
इन नशों की लत कहीं न कहीं यह दर्शाती ही है कि वे जीवन का मूल्य कम करके आंकने लगे थे और कहीं न कहीं उनकी नशे की लत उनके जीवन को समय पूर्व ही मौत की ओर ले जा रही थी |
ऐसे बहुत से कलाकार हुए हैं जिन्होने आत्महत्या की और ऐसा नहीं कि इनमे वे लोग हैं जिनके जीवन में असफलता ज्यादा थी | ऐसे ऐसे कलाकारों ने भी आत्महत्या का सहारा लेकर जीवन का परित्याग कर दिया जो बेहद सफल थे |
इससे यही साबित होता है कि कुछ लोगों में कहीं न कहीं जीवन को त्यागने की इच्छा का बीज छिपा रहता है और किसी भी तरह की समस्याओं से घिरने पर वह बीज अंकुरित हो उठता है और ऐसे लोगों में से कुछ लोग आत्मघात की ओर चले जाते हैं वरना ऐसे लोग भी देखने में आ सकते हैं जिनके दुखों की दास्तान सुनकार रोंगटे खड़े हो जाएँ और सुनने वाला सोचने पर मजबूर हो जाए कि यह आदमी जी कैसे रहा है?
ओशो || Osho
Question -7 ये विराट ब्रहमांड क्या है क्या मनुष्य भी विराट रहस्य का हिस्सा है?
हममें से कई लोग इस बात को समझना चाहते हैं कि ये विराट ब्रहमांड क्या है एक बड़े नास्तिक दिदरो ने लिखा है कि जगत का न तो कोई बनाने वाला है , न जगत के भीतर कोई रचना की प्रक्रिया है , न इस जगत का कोई सृजनक्रम है . जगत एक संयोग , एक एक्सिडेंट है . घटते – घटते , अनंत घटनाएं घटते – घटते यह सब हो गया है . लेकिन इसके होने के पीछे कोई राज नहीं है . अगर दिदरो की बात सच है , उसका तो अर्थ यह हुआ कि अगर हम कुछ ईंटों को फेंकते जाएं , तो कभी रहने योग्य मकान दुर्घटना हम कुछ ईंटों को फेंकते जाएं , तो कभी रहने योग्य मकान दुर्घटना से बन सकता है . सिर्फ फेंकते जाएं ! या प्रेम को हम बिजली से चला दें और उसके सारे यंत्र चलने लगें , तो केवल संयोग से गीता जैसी किताब छप सकती है . दैवी संपदा वाला व्यक्ति देखता है कि जगत में एक रचना – प्रकिया है . जगत के पीछे चेतना छिपी है . और जगत के प्रत्येक कृत्य के पीछे कुछ राज है . और राज कुछ ऐसा है कि हम उसकी तलहटी तक कभी न पहुंच पाएंगे , क्योंकि हम भी उस राज के हिस्से हैं ; हम उसके स्त्रोत तक कभी न पहुंच पाएंगे , क्योंकि हम उसकी एक लहर हैं . मनुष्य कुछ अलग नहीं है इस रहस्य से . वह इस विराट चेतना में जो लहरें उठ रही हैं , उसका ही एक हिस्सा है . इसलिए न तो वह इसके प्रथम को देख पाएगा , न इसके अंतिम को देख पाएगा . दूर खड़े होकर देखने की कोई सुविधा नहीं है . हम इसमें डूबे हुए हैं . जैसे मछली को कोई पता नहीं चलता कि सागर है . और मछली सागर में रहती है , फिर भी सागर का क्या रहस्य जानती है ! वैसी ही अवस्था मनुष्य की है .
जीवन मंच
यदि आप जीवन के इस चरण से आते हैं और एक अभिनेता के रूप में आते हैं; जब तुम मरोगे, तुम्हारी मौत वैसी होगी, जब पर्दा गिरता है। इसमें दर्द नहीं होगा। यह एक अधिनियम को ठीक से पूरा करने के लिए अनुपस्थिति होगी। विश्राम की ओर जाने की भावना रहेगी। और काम पूरा हो गया, परमात्मा का आह्वान हो गया, चलो वापस चलते हैं। पर्दा गिर गया।
जर्मनी के एक महान नाटककार गोएथे कवि बन गए। यह नाटकों का जीवन भर का अनुभव था। और गट्टे ने धीरे-धीरे गहराई का अनुभव करना शुरू कर दिया जिसे हम साक्षी कहते हैं, केवल नाटक के अनुभव से। नाटक, और नाटक, और नाटक। धीरे-धीरे पूरा जीवन उन्हें नाटक की तरह लगने लगा। जब गोएथे की मृत्यु हुई, ये उनके अंतिम शब्द थे। उसने आँखें खोली और उसने कहा देखो, अब पर्दा गिरता है!
यह नाटककार की भाषा थी, लेकिन चेहरे पर बड़ी खुशी थी, बहुत आनंद की अनुभूति थी। एक काम कुशलता से पूरा हुआ; पर्दा गिरता है। मृत्यु तो स्क्रीन का पतन है और जीवन फिर एक खेल है, लीला।
ओशो
Question -8 जीवन रहस्य क्या है ?
जीवन रहस्य .. संसार की पूरी दौड़ के बाद आदमी के चेहरे को देखो, सिवाय थकान के तुम वहां कुछ भी न पाओगे। मरने के पहले ही लोग मर गए होते हैं। बिलकुल थक गए होते हैं। विश्राम की तलाश होती है कि किसी तरह विश्राम कर लें। क्यों इतने थक जाते हो!आदमी बूढ़ा होता है, कुरूप हो जाता है। तुमने जंगल के जानवरों को देखा? बूढ़े होते हैं, लेकिन कुरूप नहीं होते। बुढ़ापे में भी वही सौंदर्य होता है।
तुमने बूढ़े वृक्षों को देखा है? हजार साल पुराना वृक्ष! मृत्यु करीब आ रही है, लेकिन सौंदर्य में रत्तीभर कमी नहीं होती। और बढ़ गया होता है। उसके नीचे अब हजारों लोग छाया में बैठ सकते हैं। सौंदर्य में कोई फर्क नहीं पड़ता। सौंदर्य और गहन हो गया होता है। बूढ़े वृक्ष के पास बैठने का मजा ही और है। वह जवान वृक्ष के पास बैठने से नहीं मिलेगा। अभी जवान को कोई अनुभव नहीं है।
बूढ़े वृक्ष ने न मालूम कितने मौसम देखे। कितनी वर्षाएं, कितनी सर्दियां, कितनी धूप, कितने लोग ठहरे और गए, कितना संसार बहा, कितनी हवाएं गुजरीं, कितने बादल गुजरे, कितने सूरज आए और गए, कितने चांदों से मिलन हुआ, कितनी अंधेरी रातें–वह सब लिखा है। वह सब उसमें भरा है। बूढ़े वृक्ष के पास बैठना इतिहास के पास बैठना है। बड़ी गहरी परंपरा उसमें से बही है।
बौद्धों ने, जिओशो जीवन रहस्य स वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान हुआ, उसे बचाने की अब तक कोशिश की है। वह इसीलिए कि उसके नीचे एक परम घटना घटी है। वह वृक्ष उस अनुभव से अभी आपूरित है। वह वृक्ष अभी भी उस स्पंदन से स्पंदित है। वह जो महोत्सव उसके नीचे हुआ था, वह जो बुद्ध परम ज्ञान को उपलब्ध हुए थे,
वह जो प्रकाश बुद्ध में जला था, उस प्रकाश की कुछ किरणें अभी भी उसे याद हैं। और अगर तुम बोधिवृक्ष के पास शांत होकर बैठ जाओ, तो तुम अचानक पाओगे ऐसी शांति, जो तुम्हें कहीं भी न मिली थी। क्योंकि तुम अकेले ही शांत नहीं हो रहे हो। उस वृक्ष ने एक अपरिसीम शांति जानी है। वह अपने अनुभव में तुम्हें भागीदार बनाएगा।
बूढ़े वृक्ष सुंदर हो जाते हैं। बूढ़े सिंह में और ही सौंदर्य होता है, जो जवान में नहीं होता। जवान में एक उत्तेजना होती है, जल्दबाजी होती है, अधैर्य होता है, वासना होती है।बूढ़े में सब शांत हो गया होता है। लेकिन आदमी कुरूप हो जाता है। क्योंकि आदमी थक जाता है। वृक्ष परमात्मा के खिलाफ नहीं लड़ रहे हैं। उन्होंने पाल खोल रखे हैं। जहां उसकी हवा ले जाए, वे वहीं जाने को राजी हैं। तुम उसके खिलाफ लड़ रहे हो।
आदमी अकेला उसके खिलाफ लड़ता है। इसलिए थकता है, टूटता है, जराजीर्ण होता है। अगर जीवन एक संघर्ष है तो यह होगा ही।
ओशो जीवन रहस्य

Question- 8 कुछ ऐसा खोजो जो न तो नया हो और न ही पुराना
osho kuch esa khojo jo nya bhi na ho aur purana bhi na ho?
अंग्रेजी का बड़ा कवि हुआ। कहते हैं, उसने सैकड़ों स्त्रियों को प्रेम किया। वह जल्दी चुक जाता था, दो—चार दिन में ही एक स्त्री से चुक जाता था। सुंदर था, प्रतिष्ठित था, महाकवि था। व्यक्तित्व में उसके चुंबक था, तो स्त्रियां खिंच जाती थीं—जानते हुए कि दो—चार दिन बाद दूध में से निकाल कर फेंकी गई मक्खियों की हालत हो जाएगी। मगर दो—चार दिन भी बायरन के साथ रहने का सौभाग्य कोई छोड़ना नहीं चाहता था।
कहते हैं: लोग इतने डर गए थे बायरन से कि बायरन जिस रेस्त्रां में जाता, पति अपनी पत्नियों के हाथ पकड़ कर दूसरे दरवाजे से बाहर निकल जाते।( ji osho kuch esa khijiye )सभा—सोसायटियों में बायरन आता तो लोग अपनी पत्नियों को न लाते। थी कुछ बात उस आदमी में। कुछ गुरुत्वाकर्षण था। मगर एक स्त्री उससे झुकी नहीं। जितनी नहीं झुकी, उतना बायरन ने उसे झुकाना चाहा। लेकिन उस स्त्री ने एक शर्त रखी कि जब तक विवाह न हो जाए, तब तक मेरा हाथ भी न छू सकोगे। विवाह पहले, फिर बात।
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स्त्री सुंदर थी। और ऐसी चुनौती कभी किसी ने बायरन को दी भी नहीं थी। स्त्रियां पागल थीं उसके लिए। उसका इशारा काफी था। और यह स्त्री जिद पकड़े थी और स्त्री सुंदर थी। सुंदर चाहे बहुत न भी रही हो, लेकिन उसकी चुनौती ने उसे और सुंदर बना दिया। क्योंकि जो हमें पाने में जितना दुर्गम हो, उतना ही आकर्षित हो जाते हैं हम। एवरेस्ट पर चढ़ने का कोई खास मजा नहीं, पूना की पहाड़ी पर भी चढ़ो तो भी चलेगा; मगर एवरेस्ट दुर्गम है, कठिन है। कठिन है, यही चुनौती है।
एडमंड हिलेरी जब पहली दफा एवरेस्ट फर चढ़ा और लौट कर आया तो उससे पूछा गया कि आखिर क्या बात थी, किसलिए तुम एवरेस्ट पर चढ़ना चाहते थे? तो उसने कहा: किसलिए! क्योंकि एवरेस्ट अनचढ़ा था, यह काफी चुनौती थी। यह आदमी के अहंकार को बड़ी चोट थी। एवरेस्ट पर चढ़ना ही था। चढ़ना ही पड़ता। हालांकि वहां पाने को कुछ भी नहीं था ।
वह महिला एवरेस्ट बन गई बायरन के लिए। बायरन दीवाना हो गया। महिलाएं उसके लिए दीवानी थीं, बायरन इस महिला के लिए दीवाना हो गया। और अंततः उसे झुक जाना पड़ा, विवाह के लिए राजी होना पड़ा। जिस दिन चर्च से विवाह करके वे उतरते थे सीढ़ियों पर, अभी उनके सम्मान में, स्वागत में जलाई गई मोमबत्तियां बुझी भी न थीं। अभी मेहमान जा ही रहे थे। अभी चर्च की घंटियां बज रही थीं। वह उस स्त्री का हाथ पकड़ कर सीढ़ियां उतर रहा है और तभी एक क्षण ठिठक कर खड़ा हो गया। एक स्त्री को उसने सामने से रास्ते पर गुजरते देखा।
बायरन, ऐसे आदमी ईमानदार था। उसने अपनी पत्नी को कहा: सुनो! तुम्हें दुख तो होगा, लेकिन सच बात मुझे कहनी चाहिए। कल तक मैं दीवाना था, लेकिन जैसे ही तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में आ गया और हम विवाहित हो गए हैं, मेरा सारा रस चला गया। तुम पुरानी पड़ गईं। अभी कोई संबंध भी नहीं बना है, लेकिन तुम पुरानी पड़ गईं। और वह जो स्त्री सामने से गई है गुजरती हुई, एक क्षण को मैं उसके प्रति मंत्रमुग्ध हो गया। मैं तुम्हें भूल ही गया कि तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में है। मुझे तुम्हारी याद भी नहीं रही। यह मैं तुमसे कह देना चाहता हूं। मेरा रस खत्म हो गया, चूंकि तुम मेरे हाथ में हो। मेरा रस समाप्त हो गया।
तुम शायद इतने ईमानदार न भी होओ, लेकिन तुमने खयाल किया है: जिस चीज को पाने के लिए तुम परेशान थे…। एक सुंदर कार खरीदना चाहते थे, वर्षों धन कमाया, मेहनत की, फिर जिस दिन आकर पोर्च में गाड़ी खड़ी हो गई, तुमने उसको चारों तरफ चक्कर लगा कर देखा और छाती बैठ गई, कि बस हो गया। अब? अब क्या करने को है? शायद एकाध दिन उमंग रही, राह पर निकले कार लेकर। लेकिन कार उसी दिन से पुरानी पड़नी शुरू हो गई, जिस दिन से तुम पोर्च में ले आए। अब रोज पुरानी ही होगी। और रोज—रोज तुम्हारे और उसके बीच का जो रस था वह कम होता चला जाएगा। इसी कार के लिए तुम कई दिन सोए नहीं, रात सपने देखे, दिन सोचा—विचारा—और यही अब तुम्हारे पोर्च में आकर खड़ी है और इसकी याद भी नहीं आती। यही तुम्हारे पूरे जीवन की कथा है।
मन नये की मांग करता है, लेकिन नया तो मिलते ही पुराना हो जाता है और फिर मन विषाद से भरता है।
जो नये को मांगेगा, वह बार—बार दुख में पड़ेगा, क्योंकि नया पुराना होता है।
शाश्वत को खोजो, the great osho kuch esa khojo jo nya bhi na ho aur purana bhi na ho जो नया भी नहीं है, पुराना कभी होता नहीं। जो सदा एक सा है, एकरस है। उस एकरसता का नाम ही परमात्मा है।
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