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ओशो रोने का अर्थ क्या है
Osho रोने का अर्थ क्या है ?
ओशो रोने का अर्थ क्या है ? और रोना क्या हे?
ओशो रोने का अर्थ है: क्या रोना हमे week show करता है … ओशो कहते है
रोने का अर्थ है कि इनसान के अन्दर कोई भाव इतना प्रबल हो गया है कि अब आंसुओं के अतिरिक्त उसे प्रकट करने का कोई और उपाय है नहीं है। फिर वह भाव चाहे दुख का हो, चाहे आनंद का हो।
आंसू अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। गहन भावनाओं को,जो हृदय के गहरे से उठती हैं, वे आंसुओं में ही प्रकट हो सकती हैं। शब्द छोटे पड़ते हैं।
गीत छोटे पड़ते हैं। जहां गीत चूक जाते हैं, वहां आंसू शुरू होते हैं। जो किसी और तरह से प्रकट नहीं होता वह आंसुओं से प्रकट होता है।
आंसू तुम्हारे भीतर कोई ऐसी भाव-दशा से उठते हैं जिसे सम्हालना और संभव नहीं है, वो भाव का आवेग इतना प्रबल है कि तुम उसे सम्हाल ना सकोगे, जिसकी बाढ़ तुम्हें बहा ले जाती है।
फिर, ये आंसू चूंकि आनंद के हैं, इनमें मुस्कुराहट भी मिली होगी, इनमें हंसी का स्वर भी होगा। और चूंकि ये आंसू अहोभाव के हैं, इनमें गीत की ध्वनि भी होगी। तो गाओ भी,रोओ भी, हंसो भी–तीनों साथ चलने दो। कंजूसी क्या? एक क्यों? तीनों क्यों नहीं?
लेकिन, मन हिसाबी-किताबी है। वह सोचता है: एक करना ठीक मालूम पड़ता है–या तो गा लो या रो लो। मैं तुमसे कहता हूं कि इस हिसाब को तोड़ने की ही तो सारी चेष्टा चल रही है। यही तो दीवाने होने का अर्थ है।
तुमने अगर कभी किसी को रोते, हंसते, गाते एक साथ देखा हो, तो सोचा होगा पागल है। पागल ही कर सकता है इतनी हिम्मत।
होशियार तो कमजोर होता है, होशियारी के कारण कमजोर होता है। होशियार तो सोच-सोच कर कदम रखता है, सम्हाल-सम्हाल कर कदम रखता है। उसी सम्हालने में तो चूकता चला जाता है।
होशियारों को कब परमात्मा मिला! होशियार चाहे संसार में साम्राज्य को स्थापित कर लें, परमात्मा के जगत में बिलकुल ही वंचित रह जाते हैं।
वह राज्य उनका नहीं है। वह राज्य तो दीवानों का है। वह राज्य तो उनका है जिन्होंने तर्क-जाल तोड़ा, जो भावनाओं के रहस्यपूर्ण लोक में प्रविष्ट हुए।( osho रोने का अर्थ क्या है )
इन तीनों द्वारों को एक साथ ही खुलने दो। परमात्मा ने हृदय पर दस्तक दी, तब ऐसा होता है। इसे सौभाग्य समझो।
ओशो
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ओशो रोने का अर्थ क्या है के बाद एक बात और जो osho प्रवचन मे आइ है कि सब से बड़ा पुण्य क्या है
खुश रहने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है
आदमी एक-दूसरे को दुख दे रहा है, क्योंकि हर आदमी दुखी है। एक दुखी आदमी केवल दुख दे सकता है, एक दुखी आदमी को समझाना व्यर्थ है कि आप दुख नहीं देते। वह चोट करेगा! उसे केवल दुःख है।
आपका क्या करते हैं? जब भी वह बांटेगा तब वह दुख साझा करेगा। शायद वह यह भी सोचता है कि मैं खुशी साझा कर रहा हूं, शायद वह भी मानता है कि मैं खुशी दे रहा हूं। शायद बेटा सोचता है, मैं अपनी मां को खुशी दे रहा हूं। लेकिन मां दुखी हो रही है। हो सकता है
पति सोचता है, मैं अपनी पत्नी को खुशी दे रहा हूं। लेकिन पत्नी आहत हो रही है। पत्नी सोचती है, मैं अपने पति की कितनी सेवा कर रही हूं, कितना सुख दे रही हूं। और पति का जीवन संकट में है।
हम सुख देते प्रतीत होते हैं, लेकिन यह दुःख तक पहुँचता है, क्योंकि हमारे पास दुःख के अलावा कुछ भी नहीं है। दुखी होने के अलावा और कोई पाप नहीं है।
ओशो रोने का अर्थ क्या है
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ओशो ♣ ♣
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