जब ध्यान मे बैठते है तो मन मे ना जाने कैसे ख्याल आने लगते है क्या करे? ||ओशो ||
इस पर एक बहुत ही सुन्दर वर्णन आता है ओशो सुत्र- 1 घंटा काल्पना को छूट का मतलब रोज……👇
एक घंटा रोज आंख बंद करके, कल्पना को खुली छूट दो। कल्पना को पूरी खुली छूट दो। वह किन्हीं पापों में ले जाये, जाने दो। तुम रोको मत।
तुम साक्षी-भाव से उसे देखो कि यह मन जो-जो कर रहा है, मैं देखूं। जो शरीर के द्वारा नहीं कर पाये, वह मन के द्वारा पूरा हो जाने दो। क्यों की जन्मो से मन एक बंधा एकांत मिलते ही कामवासना की तरफ भागता है… तो तुम जल्दी ही पाओगे की मन को खुली छूट देते ही वो मन कामवासना की तरफ जा रहा है…एक घंटा नियम से कामवासना पर अभ्यास करो, यहा मन के ऊपर कोई रोक नही लगानी
कामवासना के लिए एक घंटा ध्यान में लगा दो, आंख बंद कर लो और कल्पना को छूट इस तरह दो जैसे पानी मे कागज की नाव छोड दी कल्पना को छूट भयरहित हो कर दो कल्पना को छूूट द कर देखते जाना कि कैसी कल्पनाएं उठती हैं, सपने उठते हैं, जिनको तुम दबाते होओगे निश्चित ही–
उनको प्रगट होने दो! घबड़ाओ मत, क्योंकि तुम अकेले हो किसी के साथ कोई तुम पाप कर भी नहीं रहे। किसी को तुम कोई चोट पहुंचा भी नहीं रहे।
किसी के साथ तुम कोई अभद्र व्यवहार भी नहीं कर रहे कि किसी स्त्री को घूरकर देख रहे हो। तुम अपनी कल्पना को ही घूर रहे हो। लेकिन पूरी तरह घूरो।
और उसमें कंजूसी मत करना।
मन बहुत बार कहेगा कि “अरे, इस उम्र में यह क्या कर रहे हो!’ मन बहुत बार कहेगा कि यह तो पाप है। मन बहुत बार कहेगा कि शांत हो जाओ, कहां के विचारों में पड़े हो! मगर इस मन की मत सुनना। कहना कि एक घंटा तो दिया है इसी ध्यान के लिए, इस पर ही ध्यान करेंगे। और एक घंटा जितनी स्त्रियों को,
जितनी सुंदर स्त्रियों को, जितना सुंदर बना सको बना लेना।
इस एक घंटा जितना इस कल्पना-भोग में डूब सको, डूब जाना। और साथ-साथ पीछे खड़े देखते रहना कि मन क्या-क्या कर रहा है। बिना रोके, बिना निर्णय किये कि पाप है कि अपराध है। कुछ फिक्र मत करना। तो जल्दी ही तीन-चार महीने के निरंतर प्रयोग के बाद हलके हो जाओगे। वह मन से धुआं निकल जायेगा।
तब तुम अचानक पाओगे: बाहर स्त्रियां हैं, लेकिन तुम्हारे मन में देखने की कोई आकांक्षा नहीं रह गई। और जब तुम्हारे मन में किसी को देखने की आकांक्षा नहीं रह जाती, तब लोगों का सौंदर्य प्रगट होता है।
वासना तो अंधा कर देती है, सौंदर्य को देखने कहां देती है! वासना ने कभी सौंदर्य जाना? वासना ने तो अपने ही सपने फैलाये। और वासना दुष्पूर है;
उसका कोई अंत नहीं है। वह बढ़ती ही चली जाती है।
ओशो सूत्र
कल्पना को छूट || ओशो ||
अंधेरा घना है, चारों दिशाओं में – बाहर और भीतर; लेकिन आप यह नहीं देखते कि अंधेरा देखने के लिए भी आंख की जरूरत होती है। हमें रोशनी देखने के लिए आंखों की जरूरत है, हमें अंधेरा देखने के लिए आंखों की जरूरत है।
अंधे को अंधेरा दिखाई नहीं पड़ता। यह मत सोचो कि अंधे अंधेरे में रहेंगे। अंधे को अंधेरे का पता भी नहीं चलता। आंख चाहिए। यदि कोई आंख है, तो यह अंधेरा दिखाई देता है। और अगर आंख है, तो प्रकाश की खोज शुरू होती है। जो अंधेरा दिखाई पड़ता है वह बिना प्रकाश के कैसे खोजता रहेगा? अगर तुम बिना खोजे बैठे हो, तो एक ही अर्थ हो सकता है, कि तुम्हें अंधेरा दिखाई न पड़े।
सत्य की खोज अंधेरे के एहसास से शुरू होती है। ईश्वर की खोज अंधेरे की भावना से शुरू होती है। अंधेरे की गहन पीड़ा के साथ प्रकाश की यात्रा शुरू होती है। आपने अंधकार को जीवन माना है। आपने अंधेरे से पहचान की है। आप शायद सोचते हैं कि यह जीवन है। यह जीवन की शुरुआत भी नहीं है।
जीवन प्रत्याशा जन्म से शुरू होती है। लेकिन लोग यह मानते हैं कि वे एक पूरे के रूप में पैदा हुए हैं। केवल संभावना थी; आप संभावना खो सकते हैं, आप इसे वास्तविक बना सकते हैं। प्रत्येक क्षण बीतता जाता है, संभावना कम होती जा रही है।
जिस किसी के पास जीवन का यह भाव है वह बैठ नहीं पाएगा। रोओगे, चीखोगे, चिल्लाओगे। अज्ञात की आकांक्षा उसके भीतर जन्म लेगी। उसकी जीवन धारा यात्रा बन जाएगी। वह दबंग की तरह झूठ नहीं बोलेगा, वह सड़ा नहीं जाएगा। वह सरिता की तरह बहेगा, वह सागर की तलाश करेगा।
और अगर तुम प्यास के बिना खोज करते हो और अंधेरे का अनुभव किए बिना तुम प्रकाश, जिज्ञासा की चर्चा करने लगते हो, तो कुछ भी नहीं आएगा। क्योंकि जो अंधेरे वर्षों में नहीं रहा है, वह कांटे की तरह चुभता नहीं है, उसकी रोशनी की बातचीत केवल एक वार्तालाप, एक मनोरंजन, एक मनोरंजन एक बहाना होगा समय काटने के लिए; लेकिन यात्रा नहीं हो सकती। उसके पैर नहीं उठेंगे।
जिसको भी प्यास का अनुभव नहीं हुआ, उसके सामने सरोवर आ जाएगा, तो उसे कैसे पता चलेगा! केवल प्यास पहचानता है। अंधेरे को जगाने वाली केवल आंखें प्रकाश को पहचानती हैं। जब आप जीवन के दर्द को महसूस करते हैं, तो केवल आप भगवान के उस महान भगवान की आशा से आशा, आकांक्षा से भर जाएंगे।
ओशो सुत्र1 घंटा कल्पना को छूट ..
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