यह सफलता के लिए हिंदी में सबसे अच्छी inspiring कहानी है, सफलता के लिए हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक कहानी नैतिक के साथ हिंदी में लघु प्रेरक कहानियां
Motivationl story -1 || सेवा किस की करनी चाहिए ||
एक ईसाई मां अपने बच्चे को समझा रही थी कि बेटा, दूसरों की सेवा करना चाहिए। भगवान ने तुम्हें इसीलिए बनाया है कि तुम दूसरों की सेवा करो।
बेटा बुद्धिमान था, उस छोटे—से बच्चे ने—और छोटे बच्चे अक्सर ऐसी बातें पूछ लेते हैं कि बूढ़े जवाब न दे सकें—उस छोटे बच्चे ने कहा: यह तो मैं समझ गया कि मुझे इसलिए बनाया है कि दूसरों की सेवा करूं। दूसरों को किसलिए बनाया है? इसका भी उत्तर चाहिए।
मां जरा मुश्किल में पड़ी होगी, अब क्या कहे? अगर कहे, दूसरों को इसलिए बनाया है कि तुम सेवा करो, तो यह तो बड़ा अन्याय है, कि मुझको सेवा करने के लिए बनाया और उनको सेवा करवाने के लिए! यह तो मूल से अन्याय हो गया! अगर मां यह कहे कि दूसरों को इसलिए बनाया है कि वे तुम्हारी सेवा करें और तुम्हें इसलिए बनाया है कि तुम उनकी सेवा करो, तो बेटा कहेगा, अपनी—अपनी सब कर लें, क्यों फिजूल की झंझट खड़ी करनी!
मैं यही कह रहा हूं। इस दुनिया में बहुत हो चुकी दूसरों की सेवा, कुछ सार हाथ नहीं आया। दूसरों की सेवा के नाम पर बहुत थोथे धंधे चल चुके। सेवा के नाम पर सत्ताधिकारियों ने लोगों का शोषण किया है।
जो भी सेवक बनकर आता है, आज नहीं कल सत्ताधिकारी हो जाता है। जो तुम्हारे पैर दबाने से शुरू करता है, एक दिन तुम्हारी गर्दन दबाएगा! जब तुम्हारे पैर दबाए तभी चेत जाना, अन्यथा पीछे बहुत देर हो जाती है। फिर चेतने से कुछ सार नहीं। क्यों करेगा कोई सेवा तुम्हारी? और सेवा करेगा, तो बदला मांगेगा; पुरस्कार चाहेगा।
मेरी दीक्षा यही है तुम्हें: अपने आनंद से जीयो। इतना ही पर्याप्त होगा कि तुम किसी दूसरे के आनंद में बाधा न बनो। इतना ही पर्याप्त होगा कि तुम अपने आनंद का नृत्य नाचो और अपना गीत गाओ।
शायद तुम्हारे आनंद की तरंग दूसरों को भी लग जाए और वे भी आनंदित हो जाएं। शायद थोड़ी गुलाल तुमसे उड़े और वे भी लाल हो जाएं! थोड़ा रंग तुमसे छिटके और वे भी रंग जाएं। यह दूसरी बात है। तुमने सेवा की, ऐसा सोचना मत।
कोयल गाती है। तुम क्या सोचते हो कवियों की सेवा कर रही है, कि लिखो कविताएं, देखो मैं गा रही हूं! जागो कवियो! उठाओ अपनी कलमें, लिखो कविताएं! मैं आ गई सेवा करने को फिर। कि पपीहा पुकारता है, कि संतो जागो! कि देखो मैं पिय को पुकार रहा हूं, तुम भी पुकारो! मैं तुम्हारी सेवा करने आ गया। तुम इस जगत में देखते हो, कौन किसकी सेवा कर रहा है? कोयल गीत गा रही है—अपने आनंद से। पपीहा पुकार रहा है—अपने रस में विमुग्ध हो। फूल खिले हैं—अपने रस से। चांदत्तारे चलते—अपनी ऊर्जा से। तुम भी अपने में जीओ।
#ओशो
Motivational story -2 ||दूसरे की चिंता छोड़ो ||
तुमने खयाल किया, स्नानगृह में दर्पण के सामने तुम फिर से छोटे बच्चे हो जाते हो, मुंह बिचकाते हो, अपने पर ही हंसते भी हो। खो गए बीच के दिन, फिर तुम छोटे बच्चे हो गए, लौट आई एक प्रामाणिकता, एक सच्चाई। बाहर निकलते ही तुम दूसरे आदमी हो जाते हो। घर में तुम एक होते हो, बाजार में तुम और भी दूसरे हो जाते हो।
जितनी दूसरों की और परायों की मौजूदगी बढ़ती चली जाती है, उतना ही जाल बड़ा होता जाता है, उतनी ही उलझन होती जाती है: हजारों आंखों को राजी करना है; हजारों लोगों को प्रसन्न करना है। इसलिए तो इतना पाखंड है।
वही व्यक्ति सच्चा हो सकता है, जिसने इसकी चिंता छोड़ दी कि दूसरे क्या सोचते हैं।
मगर उस आदमी को हम पागल कहते हैं, जो इसकी चिंता छोड़ देता है कि दूसरे क्या कहते हैं। इसलिए सत्य के खोजी के जीवन में ऐसा पड़ाव आता है जब उसे करीब-करीब पागल हो जाना पड़ता है; फिक्र छोड़ देता है कि दूसरे क्या कहते हैं, हंसते हैं, मजाक करते हैं। ऐसे जीने लगता है जैसे दूसरे हैं ही नहीं…….
ओशो जागरण …
Motivational story-3
Motivationl story-3 Real person
Abraham Lincoln president हुआ अमरीका का उसका बाप तो जूता सीता था, चमार था !
जब वह प्रेसिडेंट हुआ और पहले दिन वहां की सीनेट में बोलने को खड़ा हुआ, तो अनेक लोगों को उससे बड़ी पीड़ा हो गई कि एक चमार का लड़का और प्रेसिडेंट हो जाए मुल्क का! तब … किसी ने खड़े होकर व्यंग्य कर दिया और कहा कि महानुभाव लिंकन, ज्यादा गुरूर में मत फूलो! Yaad rakhna तुम्हारे पिता जूते सिया करते थे तो जरा इस बात का खयाल रखना, नहीं तो प्रेसिडेंट होने में भूल जाओ।
इस बात से तो दुखी हो जाता, क्रोध से भर जाता शायद गुस्से आता और उस आदमी को कोई नुकसान पहुंचाता प्रेसिडेंट नुकसान पहुंचा सकता था लेकिन Abraham Lincoln president की आखो आंसू आ गए और उसने कहा कि तुमने ठीक समय पर मेरे पिता की मुझे याद दिला दी।
आज वेशक वे संसार में नहीं हैं, लेकिन फिर भी मैं यह कह सकता हूं कि मेरे पिता ने कभी किसी के गलत जूते नहीं सिए हैं, और जूते सीने में वे अदभुत कुशल थे।
वे इतने कुशल कारीगर थे जूता सीने में कि मुझे आज भी उनका नाम याद करके गौरव का अनुभव होता है। और मैं यह भी कह देना चाहता हूं–और यह बात लिख ली जाए,
Lincoln बोले –कि जहां तक मैं समझता हूं, मैं उतना अच्छा प्रेसिडेंट नहीं हो सकूंगा, जितने अच्छे वे जूता सिलने वाले थे!
मैं अपने father के जैसे कुशल नही हो सकता हूं, उनकी कुशलता बेजोड़ थी! यह एक समझ की बात है, एक बहुत गहरी समझ की जब तक दुनिया में पदों के साथ इज्जत होगी, तब तक अच्छी दुनिया पैदा नहीं हो सकती और ईष्या बनी रहेगी
Comptition काम के कारण नहीं है, प्रतिस्पर्धा है पदों के साथ जुड़े हुए आदर के कारण कोई आदमी बागवान नहीं होना चाहता, बागवान होने में कौन सी इज्जत मिलेगी?
President होना चाहता है यह तब तक चलेगा, जब तक हम गरीब बागवान को भी इज्जत देना शुरू नहीं करेंगे
ओशो,
समाधि कमल
Motivational story -4 भाग्य
एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भीख मागते देखा…. अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को सोने की मुद्रा से भरी एक पोटली दे दी।
जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला। किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया।
ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी… इस ब ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी किन्तु मार्ग में ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा, घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी और उस पुराने घड़े को ले कर चली गई और जैसे ही उसने घड़े को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धारा के साथ बह गया।
ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया। अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा।
अर्जुन की व्यथा सारा वृतांत सुनकर बड़ी हताशा हुई और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता। अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए। तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु मेरी दी मुद्राए और माणिक भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ? यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस ब्राहमण के पीछे जाने को कहा।
रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि “दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ? प्रभु की यह कैसी लीला है “? ऐसा विचार करता हुआ वह चला जा रहा था उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी, उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक मछली फँसी है, और वह छूटने के लिए तड़प रही है ।
ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा”इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं।क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये”। यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया। कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा।
तभी मछली के मुख से कुछ निकला।उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था। ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा “मिल गया, मिल गया ”..!!! तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी। उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना “ मिल गया मिल गया ” लुटेरा भयभीत हो गया।
उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है और इसीलिए चिल्ला रहा है, अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा। इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी। यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके।
अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया। श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है, जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा।
किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए। तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा। इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि, जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं *****
ओशो
Motivational story-5 परमात्मा प्रार्थना
🔴परमात्मा के सामने जब तुम हाथ फैलाते हो, तुम मांगते क्या हो? संसार ही मांगते हो। तुम्हारे हाथ ही संसारी हैं। तुम जब परमात्मा की प्रार्थना करने लगते हो, तुम्हारी प्रार्थना खुशामद जैसी होती है। इसलिए तो प्रार्थना को स्तुति कहते हैं–कि तू महान है, कि तू पतित-पावन है। यह तुम किस पर मक्खन लगा रहे हो!
तुमने मक्खन लगाना सीखा संसार में। यहां तुमने देखे लोग, जिनके अहंकार को जरा फुसलाओ–मक्खन लगाओ, मालिश करो–फिर जो भी तुम करवाना चाहो, करवा लो। गधों को घोड़े कहो, वे प्रसन्न हो जाते हैं। जब रास्ते पर तुम बिना प्रकाश की साइकिल से पकड़ जाओ, पुलिस वाले को इंस्पेक्टर कहो, वह छोड़ देता है।
वही आदमी भगवान की खुशामद कर रहा है, वह सोचता है कि ठीक है, समझा-बुझा लेंगे। लेकिन असली मंशा उसकी थोड़ी देर बाद जाहिर होती है, वह कहता है, नौकरी नहीं मिल रही। अब वह यह कह रहा है, इतनी प्रार्थना की तेरी और नौकरी नहीं मिल रही है, अब तेरी प्रार्थना में संदेह पैदा हुआ जा रहा है। अब तेरी इज्जत का सवाल है। अब बचा अपनी इज्जत, लगवा नौकरी। कि लड़का बीमार है, ठीक नहीं हो रहा है। और मैं इतनी तेरी पूजा कर रहा हूं। और तू क्या कर रहा है?
तुम्हारी प्रार्थना में भी शिकायत है। अगर शिकायत न हो, तो प्रार्थना ही नहीं होती। प्रार्थना की क्या जरूरत है?
Motivational story-6 जीते जी मरना
मरना 2 प्रकार का होता है। एक मरना वो है जिसमे आत्मा शरीर को खाली कर देती है, और उसके बाद शरीर को जलाकर राख किया जाता है इसे मौत या मरना कहते हैं,
लेकिन यहां जी ते जी मरने का अर्थ है मृत्यु से पहले मरना या अपनी मर्जी से रोज – रोज मरना क्योंकि इसमे जिन्दा रहते हुए ही शरीर से आत्मा को खाली करना होता है।
जब कोई गुरूमुख आंखो के केन्द्र पर पहुंचता है तो उसकी रूहानी प्रगति शुरू होती है। उसकी आत्मा नौ द्वारा से सिमट कर आंखों के पीछे आजाती है और शरीर शून्य यानी मुर्दे के समान हो जाता है। तब शिष्य की आत्मा अंदर के आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करती है जब शरीर अचेत हो जाता है, परन्तु शिष्य अंतर मे पूरी तरह सजग रहता है वहां उसकी चेतना पूर्ण सक्रिय रहती है।
आत्मा को स्थूल शरीर मे समेट कर आंखों के केंद्र पर लाने की इस क्रिया को ही संतो ने जी ते जी मरना कहा है।
संतो के जी ते जी मरने का कहने का भाव ये है कि संसार के प्रति मृत यानी उदासीन हो जाना है। संसार के आकर्षणो मे से अनासक्त हो जाना है।
आमतौर पर मृत्यु के समय आत्मा शरीर के विभिन्न अंगों – हाथ, पैर, धड आदि से सिमट कर आंखों के पीछे आती है और यही से निकल कर हमेशा के लिए शरीर छोड देती है।
लेकिन संतो द्वारा सिखाये गये अभ्यास मे शिष्य की आत्मा इसी प्रकार इस शरीर को छोड़कर आंखो के केन्द्र में आती है और यहां से रूहानी मंडलो मे प्रवेश करती है। परन्तु इस अवस्था में उसे शरीर से जोडे रखने वाला सुक्ष्म तार नहीं टूटता जो मौत के समय टूट जाता है। और इस अभ्यास के बाद शिष्य की आत्मा वापस शरीर में आजाती है।इसलिए इसे जीते जी मरना कहा गया है।
यह जीते जी मरने की अवस्था प्रभु प्राप्ति और जन्म मरण के बंधनो से छुटने का एक मात्र साधन है कबीर साहिब कहते हैं :- “जीते जी मरो और इस प्रकार मरकर पुन:जी उठो तो फिर से तुम्हारा जन्म नहीं होगा।”
जो इस प्रकार जीवित मरकर नाम में समा जाते हैं उनकी लीव सुन्न अर्थात माया रहित शुध्द आध्यात्मिक मंडलो मे लगी रहती है यह जीते जी मरने की अवस्था गुरू के दिये गये नाम के अभ्यास से ही प्राप्त होती है।
संत नामदेव जी कहते हैं कि :- गुरु द्वारा दिए गए शब्द के अभ्यास से मैने अपने आप को पहचाना जिन्दा रहते हूए मरने की विधि सिखी
जब तक जीते जी शरीर को खाली नही करेगें तब तक रूहानी आनंद की गली में कदम नहीं जा सकते
Osho..
Motivational story- 7 जीवन को कैसे जीयें ?
माइकल जैक्सन 150 साल जीना चाहता था! किसी सेे साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था!
लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था ! अपनी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे !
जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक कीजांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था!
स्वयं को व्यायाम करवाने के लिए उसने 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था, उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था!
अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और
अपने दोस्त भी गोरे बनाए
शादी भी गोरी औरतों के साथ की! नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया।
वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था उसने अपने लिए अंगदान करने वाले
डोनर भी तैयार कर रखे थे!
जिन्हें वह खर्चा देता था, ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत पड़ने पर वह आकर दे दें,
उसको लगता था वह पैसे और अपने रसूख की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है, लेकिन वह गलत साबित हुआ 25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी,
उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी में हालत काबू में नहीं आए, सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए
वह भी उसे नहीं बचा पाए।
उसने 25 साल तक डॉक्टर की सलाह के विपरीत, कुछ नहीं खाया! अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी
50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था
और 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया ! जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने का इंतजाम कर रखा था!
उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया!
जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया कि,उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था! उसका सिर गंजा था,उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे,
उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे, प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले
दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे!
माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था। यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं।
माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानी 25 जून 2009 को 3:15 PM पर, यह सभी क्रैश हो गए थे। उसकी मौत की खबर का पता चलता ही गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया!
ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और गूगल क्रैश हो गया, ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया! मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं!
सार यही है, बनावटी दुनिया के बनावटी लोग कुदरती मौत की बजाय बनावटी मौत ही मरते हैं! “क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर , मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर”… धनवान होना गलत नहीं है ,
बल्कि……. “सिर्फ धनवान होना गलत है |
एक दिन हम सब जुदा हो जाएँगे, तब अपनी बातें, अपने सपने हम बहुत मिस करेंगे। दिन, महीने, साल गुजर जाएँगे, शायद कभी कोई संपर्क भी नहीं रहेगा।
जो कभी भी आपकी मुस्कान की वजह बने थे।
ओशो नमन
Motivational story -8 हम कौन हैं?
मैंने सुना है, ईजिप्त में एक बहुत पुराना मंदिर था। हजारों वर्ष पुराना मंदिर था। लेकिन उस मंदिर के देवता का कभी किसी ने कोई दर्शन नहीं किया था। उस देवता के ऊपर पर्दा पड़ा हुआ था। और पुजारी भी उसे नहीं छू सकते थे। सौ पुजारी थे
उस मंदिर के और सौ पुजारी इकट्ठे ही उस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते थे, ताकि कोई एक पुजारी उसका पर्दा उठा कर अंदर की मूर्ति को न देख ले। हजारों वर्ष की परंपरा यही थी कि मूर्ति को देखना अनुचित है, अधार्मिक है, पाप है। कभी किसी ने उस मंदिर की मूर्ति नहीं देखी थी। जिन्होंने देखी होगी, वे कई जमाने पहले खो गए। हजारों लोग उस मंदिर के दर्शन करने आए, लेकिन वे पर्दे के सामने ही दर्शन करके चले जाते। कौन पाप करता?
लेकिन एक दिन एक पागल युवक आया उस मंदिर में, और हाथ–झुक कर जब वह पूजा कर रहा था, अचानक दौड़ा और उसने पर्दा उठा लिया। एक क्षण में यह हो गया। पर्दा उठा कर उसे क्या दिखाई पड़ा? बहुत आश्र्चर्य की बात हुई। वहां कोई मूर्ति न थी। वहां सिर्फ एक दर्पण था, जिसमें उसे अपना ही चेहरा दिखाई पड़ा। वहां कोई मूर्ति थी ही नहीं। वहां सिर्फ एक दर्पण था, जिसमें उसने अपने को ही देखा।
लेकिन उस मंदिर का राज सारे लोगों में फैल गया। लोगों ने आना उस मंदिर में बंद कर दिया। क्योंकि जिस मंदिर में मूर्ति न हो भगवान की, और धोखा दिया गया हो और सिर्फ दर्पण रखा हो, तो उस मंदिर में कौन जाएगा? उस मंदिर में कोई भी नहीं गया।
धीरे-धीरे वह मंदिर गिर गया। उसके पुजारी उजड़ गए। क्योंकि जिस मंदिर में सिर्फ दर्पण हो, वहां कौन जाएगा? और मैं आपसे कहता हूं: कि अगर लोग जानते होते, तो और सब मंदिरों को छोड़ देते और उसी मंदिर में जाते। क्योंकि जहां, जो हम हैं, वही दिखाई पड़ जाए, वही मंदिर है। धर्म का एक ही राज है कि हमें दिखाई पड़ जाए कि हम कौन हैं। धर्म एक दर्पण बन जाए और हमें पता चल जाए कि हम कौन हैं।
Motivational story -9 प्रार्थना किसके लिए करें?
ओशो प्रार्थना किस के लिए करे इस सवाल के जवाब मे ओशो बता रहे है अगर कोई प्रार्थना करता, तो वह प्रार्थना नहीं होती। लेकिन प्रार्थना का अर्थ है कि किसी को कुछ करना है और किसी को करना है।
यानि यहा दो है और (ओशो प्रार्थना किस के लिए करे) एक कारण होगा, कोई आवेदक होगा और कोई इसे करेगा। तो हम महसूस करेंगे, प्रार्थना नहीं की जा सकती, अगर कोई कारण नहीं है और कोई भी ऐसा करने वाला नहीं है। अकेला आदमी क्या करेगा, कैसे करेगा!
मेरा कहना यह है कि ओशो प्रार्थना किस के लिए करे मतलब अगर हम ठीक से समझें, एक क्रिया नहीं है, बल्कि एक वृत्ति है, एक भावपूर्ण मनोदशा है। प्रार्थना कोई प्रश्न नहीं है। प्रार्थना प्रश्न नहीं है, प्रार्थनापूर्ण हृदय है।
यह एक और मामला है। आप रास्ते से हट रहे हैं। प्रार्थना-शून्य हृदय है। कोई रास्ते से गिर गया है और मर रहा है, प्रार्थना-शून्य हृदय बाहर आ जाएगा जैसे कि रास्ते में कुछ भी नहीं हुआ। लेकिन प्रार्थनापूर्ण हृदय कुछ करेगा; वह जो गिरा है, उसे उठाएंगे। वह चिंता करता, दौड़ता, कहीं पहुंचाता। यदि रास्ते में कांटे हैं, तो प्रार्थना-शून्य हृदय कांटों से बच जाएगा, लेकिन कांटों को नहीं उठाएगा। एक प्रार्थनापूर्ण हृदय उन कांटों को उठाने का श्रम करेगा; उन्हें उठाकर फेंक देंगे।
प्रार्थनापूर्ण हृदय का अर्थ है: एक प्रेमपूर्ण हृदय। और जब किसी व्यक्ति को किसी एक व्यक्ति से प्यार होता है, तो हम उसे प्यार कहते हैं। और जब किसी व्यक्ति का प्रेम किसी के प्रति, सभी के प्रति नहीं बंधा होता है, तो मैं उसे प्रार्थना कहता हूं।
प्रेम दो लोगों के बीच का संबंध है और प्रार्थना एक और अनंत के बीच का संबंध है। वह जो हमारे चारों तरफ फैला हुआ है, पौधे हैं, पक्षी हैं, सब, वह जो उन सभी के प्रति प्रेमपूर्ण है, प्रार्थना में है। प्रार्थना का मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति मंदिर में हाथ जोड़कर बैठा है और वह प्रार्थना कर रहा है।
प्रार्थना का अर्थ है: वह व्यक्ति जो जीवन में जहाँ भी आँखें, हाथ, पैर डालता है, साँस लेता है, हर पल प्यार से भरा होता है।
प्रार्थना भी बांधती है, वह किससे पूछती है? किसके लिए प्रार्थना करें? उनमें से कोई भी प्रार्थना का मतलब हर कोई नहीं है। वह जो चारों तरफ फैला हुआ है, वह जो चारों तरफ फैला हुआ है, उसके प्रति प्रेम की भावना को प्रार्थना कहा जाता है।
ओशो
Motivatinal Story- 10 मन को शान्ति
ओशो…
मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया।
क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?
उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है।
तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।
मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।
इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।
देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?
उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी।
और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके।
तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।
उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।
और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।
देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे।
जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!
जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।
एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।
लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?
देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।
भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।
लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।
दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा।
क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।
तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक ही इनके बारे में सोच कर परेशान हो रहा था। मैं यह भूल गया था कि सृष्टि बनाने वाला परमात्मा ने इनके लिए कुछ सोच रखा है। नियति ने इनके लिए कुछ तय कर रखा है और मैं नाहक ही बीच में परेशान कर रहा हूं।